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उजला-उजला हंस एक दिन
उड़ते-उड़ते आया,
हंस देखकर काला कौआ
मन ही मन शरमाया।
आज उठा मैं सबसे पहले!लगा सोचने उजला-उजलासबसे पहले आज सुनूँगा,हवा सवेरे की चलने पर,हिल, पत्तों का करना ‘हरमैं कैसे हो पाऊँ-हर’देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले,उजला हो सकता हूँलाल, सुनहले!साबुन से मैं अगर नहाऊँ।
आज उठा मैं सबसे पहले!यही सोचता मेरे घ्ज्ञर परसबसे पहले आज सुनूँगाआया काला कागा,चिड़िया का डैने फड़का करऔर गुसलखाने से मेराचहक-चहककर उड़ना ‘फर-फर’देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले,लाल सुनहले!साबुन लेकर भागा।
आज उठा मैं सबसे पहले!फिर जाकर गड़ही पर उसनेसबसे पहले आज चुनूँगासाबुन खूब लगाया,पौधे-पौधे की डाली परखूब नहाया,मगर न अपनाफूल खिले जो सुंदर-सुंदरदेखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले?लाल, सुनहलेकालापन धो पाया।
आज उठा मैं सबसे पहले!मिटा न उसका कालापन तोसबसे कहता आज फिरूँगामन ही मन पछताया,कैसे पहला पत्ता डोला,कैसे पहला पंछी बोला,कैसे कलियों ने मुँह खोलाकैसे पूरब ने फैलाए बादल पीले,लाल, सुनहले!पास हंस के कभी न फिर वहआज उठा मैं सबसे पहले!काला कौआ आया।
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