भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बच्चे, तुम अपने घर जाओ / गगन गिल

932 bytes added, 17:48, 15 अक्टूबर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गगन गिल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गगन गिल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatStreeVimarsh}}
<poem>बच्चे, तुम अपने घर जाओ

घर कहीं नहीं है?
तो वापस कोख़ में जाओ

मां की कोख नहीं है?
पिता के वीर्य में जाओ

पिता कहीं नहीं है?
तो मां के गर्भ में जाओ

गर्भ का अण्डा बंजर?
तो मुन्ना झर जाओ तुम
उसकी माहवारी में

जाती है जैसे उसकी
इच्छा संडास के नीचे
वैसे तुम भी जाओ
लड़की को मुक्त करो अब
बच्चे, तुम अपने घर जाओ।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits