भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
सामने बैठ अभी फेंक के ख़ंजर मत जा
धूप क्या है तुझे अंदाज़ा नहीं है 'क़ैसर'
आबले पाँव में पड़ जाएँगे बाहर मत जा
</poem>