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रोटियाँ / नज़ीर अकबराबादी

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जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियाँ ।रोटियां।फूली नही नहीं बदन में समाती हैं रोटियाँ ।।रोटियां॥आँखें परीरुख़ों<ref>परियों जैसी शक्ल सूरत वाली</ref> आंखें परीरुखों से लड़ाती हैं रोटियाँ ।रोटियां।सीने ऊपर भी हाथ चलाती हैं रोटियाँ ।।रोटियां॥ जितने मज़े मजे़ हैं सब ये यह दिखाती हैं रोटियाँ ।।1।।रोटियां॥1॥
रोटी से जिनका नाक नाम तलक पेट है भरा ।भरा।करता फिरे है क्या वह उछल-कूद जा बजा ।।बजा॥दीवार फ़ाँद फ़ांद कर कोई कोठा उछल गया ।गया।ठट्ठा हँसी ठट्टा हंसी शराब, सनम साक़ी, उस सिवा ।।सिवा॥ सौ-सौ तरह की धूम मचाती हैं रोटियाँ ।।2।। जिस जा पे हाँडी चूल्हा तवा और तनूर है ।ख़ालिक़ के कुदरतों का उसी जा ज़हूर है ।।चूल्हे के आगे आँच जो जलती हुज़ूर है ।जितने हैं नूर सब में यही ख़ास नूर है ।। इस नूर के सबब नज़र आती हैं रोटियाँ ।।3।।रोटियां॥2॥
आवे तवे तनूर का जिस जा ज़ुबाँ पे नाम ।हांडी, चूल्हा तवा और तनूर है।ख़ालिक की कुदरतों का उसी जा ज़हूर है॥या चक्की चूल्हे के जहाँ गुलज़ार हो तमाम ।।आगे आंच जो जलती हुजूर है।वां सर झुका के कीजे दण्डवत और सलाम ।जितने हैं नूर सब में यही ख़ास नूर है॥इस वास्ते कि ख़ास ये रोटी नूर के हैं मुक़ाम ।। पहले इन्हीं मकानों में सबब नजर आती हैं रोटियाँ ।।4।।रोटियां॥3॥
इन रोटियों के नूर से सब दिल हैं पूर-पूर ।आटा नहीं है छलनी से छन-छन गिरे है नूर ।।पेड़ा हर एक उस आवे तवे तनूर का है बर्फ़ी जिस जा जुबां पे नाम।या मोती चूर ।चक्की चूल्हे के जहां गुलज़ार हो तमाम॥हरगिज़ किसी तरह न बुझे पेट का तनूर ।।वां सर झुका के कीजे दण्डवत और सलाम। इस आग को मगर यह बुझाती वास्ते कि ख़ास वह रोटी के हैं मुकाम॥पहले इन्हीं मकानों में आती हैं रोटियाँ ।।5।।रोटियां॥4॥
पूछा किसी ने यह किसी कामिल<ref>निपुण, होशियार</ref> फक़ीर इन रोटियों के नूर से सब दिल हैं पूर पूर।ये मेह्र<ref>सूर्य</ref>आटा नहीं है छलनी से छन-ओ-माह<ref>चाँद</ref> हक़ ने बनाए हैं काहे के ।।छन गिरे है नूर॥वो सुन के बोला, बाबा ख़ुदा तुझ को ख़ैर दे ।पेड़ा हर एक उसका है बर्फ़ी या मोती चूर।हम तो हरगिज़ किसी तरह चाँद समझें, न सूरज हैं जानते ।।बुझे पेट का तनूर॥ बाबा हमें तो ये नज़र आती इस आग को मगर यह बुझाती हैं रोटियाँ ।।6।।रोटियां॥5॥
फिर पूछा उस किसी ने कहिए यह है दिल का नूर क्या ?इस के मुशाहिर्दकिसी क़ामिल<ref>निरीक्षणसूर्य</ref> में है ख़िलता ज़हूर<ref>प्रकट</ref> क्या ?फक़ीर से।वो बोला सुन के तेरा गया है शऊर क्या ?कश्फ़-उल-क़ुलूबयह मेहरो<ref>मन की गुप्त जानकारी देनासूर्य</ref> और ये कश्फ़-उल-कुबूरमाह<ref>क़ब्र की गुप्त जानकारी देनाचांद</ref> क्या ?हक़ ने बनाए हैं काहे के॥वह सुनके बोला, बाबा खु़दा तुझको खै़र दे। जितने हम तो न चांद समझें, न सूरज हैं कश्फ़<ref>गुप्तज्ञान</ref> सब ये दिखाती जानते॥बाबा हमें तो यह नज़र आती हैं रोटियाँ ।।7।।रोटियां॥6॥
रोटी जब आई पेट फिर पूछा उसने कहिये यह है दिल का नूर क्या?इसके मुशाहिर्द<ref>निरीक्षण</ref> में सौ कन्दहै खि़लता ज़हूर<ref>शक्कर, मिठाईप्रकट</ref> घुल गए ।क्या?गुलज़ारवह बोला सुनके तेरा गया है शऊर क्या?कश्फु़लकु़लूब<ref>बाग़हृदय का गुप्त ज्ञान</ref> फूले आँखों में और ऐश तुल गए ।।दो तर निवाले पेट में जब आ के ढुल गए ।चौदह तबक़कश्फुलकु़बूर<ref>चौदह लोक, इस्लामी दर्शन के अनुसार लोक चौदह हैं।क़ब्र का गुप्त ज्ञान</ref> के क्या?जितने थे हैं कश्फ<ref>गुप्त ज्ञान</ref> सब भेद खुल गए ।। यह कश्फ़ यह कमाल दिखाती हैं रोटियाँ ।।8।।रोटियां॥7॥
रोटी जब आई पेट में हो तो फिर कुछ जतन न हो ।सौ क़न्द<ref>शकर</ref> घुल गए।मेले की सैर ख़्वाहिश-ए-बाग़-ओ-चमन न हो ।।गुलज़ार<ref>बाग</ref> फूले आंखों में और ऐश तुल गए॥भूके ग़रीब दिल की ख़ुदा से लगन न हो ।दो तर निवाले पेट में जब आके ढुल गए।सच है कहा किसी ने कि भूके भजन न हो ।।चौदह तबक़<ref>चौदह लोक</ref> के जितने थे सब भेद खुल गए॥ अल्लाह की भी याद दिलाती यह कश्फ़ यह कमाल दिखाती हैं रोटियाँ ।।9।।रोटियां॥8॥
अब जिनके आगे मालपूए भर के थाल हैं ।रोटी न पेट में हो तो फिर कुछ जतन न हो।पूरे भगत उन्हें कहो, साहब के लाल हैं ।।मेले की सैर ख़्वाहिशे बागो चमन न हो॥और जिन के आगे रोग़नी और शीरमाल हैं ।भूके ग़रीब दिल की खु़दा से लगन न हो।आरिफ़ वही हैं और वही साहिब कमाल हैं ।। सच है कहा किसी ने कि भूके भजन न हो॥ पकी पकाई अब जिन्हें आती अल्लाह की भी याद दिलाती हैं रोटियाँ ।।10।।रोटियां॥9॥
कपड़े किसी अब जिनके आगे माल पुए भर के लाल हैं रोटी के वास्ते ।थाल हैं।लम्बे किसी पूरे भगत उन्हें कहो, साहब के बाल हैं रोटी के वास्ते ।।लाल हैं॥बाँधे कोई रुमाल है रोटी के वास्ते ।और जिनके आगे रोग़नी और शीरमाल हैं।सब कश्फ़ आरिफ़ वही हैं और वही साहिब कमाल हैं रोटी के वास्ते ।।है॥ जितने हैं रूप सब ये दिखाती पक्की पकाई अब जिन्हें आती हैं रोटियाँ ।।11।।रोटियां॥10॥
कपड़े किसी के लाल हैं रोटी से नाचे प्यादा क़वायद दिखा-दिखा ।के वास्ते।असवार नाचे घोड़े को कावा लगा-लगा ।।लम्बे किसी के बाल हैं रोटी के वास्ते॥घुँघरू को बाँधे पैक<ref>डाकिया या पत्रवाहक, पुराने ज़माने में जिसके पैर में या लाठी में घूँघरू बँधे होते थे</ref> भी फिरता है जा बजा ।बांधे कोई रुमाल हैं रोटी के वास्ते।सब कश्फ़ और इस कमाल हैं रोटी के सिवा ग़ौर से देखो तो जा बजा ।।वास्ते॥ सौ-सौ तरह के नाच जितने हैं रूप सब यह दिखाती हैं रोटियाँ ।।12।।रोटियां॥11॥
रोटी के नाच तो हैं सभी ख़ल्क में बड़े ।से नाचे प्यादा क़वाइद दिखा दिखा।कुछ भाँड भगतिए ये नहीं फिरते नाचते ।।असवार नाचे घोड़े का कावा लगा लगा॥ये रण्डियाँ जो नाचें हैं घूँघट घुंघरू को मुँह पे ले ।घूँघट न जानो दोस्तो ! तुम जिनहारबांधे पैक<ref>हरगिजपत्रवाहक, कदापिडाकिया। उस काल में डाकिया अपने पैर या लाठी में घुंघरू बांधते थे</ref> इसे ।।भी फिरता है जा बजा। उस पर्दे में ये अपनी कमाती और इस सिवाजो ग़ौर से देखा तो जा बजा॥सौ सौ तरह के नाच दिखाती हैं रोटियाँ ।।13।।रोटियां॥12॥
वह जो नाचने में बताती हैं भाव-ताव ।चितवन इशारतों से कहें हैं कि ’रोटी लाव’ ।।रोटी के सब सिंगार नाच तो हैं रोटी के राव-चाव ।सभी ख़ल्क में बड़े।रंडी की ताब क्या करे कुछ भांड भगतिये यह नहीं फिरते नाचते॥यह रण्डियां जो करे इस कदर बनाव ।।नाचें हैं घूंघट को मुंह पे ले। यह आनघूंघट न जानी दोस्तो! तुम ज़िनहार<ref>कदापि, हरगिज़</ref> इसे॥उस पर्दे में यह झमक तो दिखाती अपनी कमाती हैं रोटियाँ ।।14।।रोटियां॥13॥
अशराफ़ों<ref>कुलीन, खानदानी</ref> ने जो अपनी ये जातें यह ज़ातें छुपाई हैं ।हैं।सच पूछिएपूछिये, तो अपनी ये यह शानें बढ़ाई हैं ।।हैं॥कहिए कहिये उन्हीं की रोटियाँ रोटियां कि किसने खाई हैं ।हैं।अशराफ़<ref>शरीफ़ का बहुवचन, कुलीन, खानदानी</ref> सब में कहिए, तो अब नानबाई हैं ।।नान बाई हैं॥ जिनकी दुकान से हर कहीं जाती हैं रोटियाँ ।।15।।रोटियां॥15॥
भटियारियाँ भाटियारियां कहावें न अब क्योंकि रानियाँ ।रानियां।मेहतर खसम ख़सम हैं उनके वे वह हैं मेहतरानियाँ ।।मेहतरानियां॥ज़ातों जातों में जितने और हैं क़िस्से कहानियाँ ।कहानियां।सब में सबमें उन्हीं की ज़ात को ऊँची की ऊंची हैं बानियाँ ।।बानियां॥ किस वास्ते की कि सब ये यह पकाती हैं रोटियाँ ।।16।।रोटियां॥16॥
दुनिया दुनियां में अब बदी न कहीं और निकोई<ref>अच्छाई</ref> है ।है।ना दुश्मनी ना दोस्ती ना तुन्दखोई<ref>बदमिजाज़ीबदमिजाजी</ref> है ।।है॥कोई किसी का, और किसी का न कोई है ।है।सब कोई है उसी का कि जिस हाथ डोई है ।।ढोई है॥ नौकर नफ़र<ref>मज़दूर</ref> ग़ुलाम गुलाम बनाती हैं रोटियाँ ।।17।।रोटियां॥17॥
रोटी का अब अज़ल से हमारा तो है ख़मीर ।ख़मीर।रूखी भी रोटी हक़ में हमारे है शहद-ओ-शीर ।।शहदो शीर॥या पतली होवे मोटी ख़मीरी हो या फ़तीर<ref>गुंधे हुए आटे की लोई</ref> ।गेहूँगेहूं, ज्वार, बाजरे की जैसी भी हो ‘नज़ीर‘ ।।‘नज़ीर’॥ हमको तो सब तरह की ख़ुश आती हैं रोटियाँ ।।18।।रोटियां॥18॥
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