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जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियाँ ।रोटियां।फूली नही नहीं बदन में समाती हैं रोटियाँ ।।रोटियां॥आँखें परीरुख़ों<ref>परियों जैसी शक्ल सूरत वाली</ref> आंखें परीरुखों से लड़ाती हैं रोटियाँ ।रोटियां।सीने ऊपर भी हाथ चलाती हैं रोटियाँ ।।रोटियां॥ जितने मज़े मजे़ हैं सब ये यह दिखाती हैं रोटियाँ ।।1।।रोटियां॥1॥
रोटी से जिनका नाक नाम तलक पेट है भरा ।भरा।करता फिरे है क्या वह उछल-कूद जा बजा ।।बजा॥दीवार फ़ाँद फ़ांद कर कोई कोठा उछल गया ।गया।ठट्ठा हँसी ठट्टा हंसी शराब, सनम साक़ी, उस सिवा ।।सिवा॥ सौ-सौ तरह की धूम मचाती हैं रोटियाँ ।।2।। जिस जा पे हाँडी चूल्हा तवा और तनूर है ।ख़ालिक़ के कुदरतों का उसी जा ज़हूर है ।।चूल्हे के आगे आँच जो जलती हुज़ूर है ।जितने हैं नूर सब में यही ख़ास नूर है ।। इस नूर के सबब नज़र आती हैं रोटियाँ ।।3।।रोटियां॥2॥
रोटी न जब आई पेट में हो तो फिर कुछ जतन न हो ।सौ क़न्द<ref>शकर</ref> घुल गए।मेले की सैर ख़्वाहिश-ए-बाग़-ओ-चमन न हो ।।गुलज़ार<ref>बाग</ref> फूले आंखों में और ऐश तुल गए॥भूके ग़रीब दिल की ख़ुदा से लगन न हो ।दो तर निवाले पेट में जब आके ढुल गए।सच है कहा किसी ने कि भूके भजन न हो ।।चौदह तबक़<ref>चौदह लोक</ref> के जितने थे सब भेद खुल गए॥ अल्लाह की भी याद दिलाती यह कश्फ़ यह कमाल दिखाती हैं रोटियाँ ।।9।।रोटियां॥8॥
कपड़े किसी के लाल हैं रोटी से नाचे प्यादा क़वायद दिखा-दिखा ।के वास्ते।असवार नाचे घोड़े को कावा लगा-लगा ।।लम्बे किसी के बाल हैं रोटी के वास्ते॥घुँघरू को बाँधे पैक<ref>डाकिया या पत्रवाहक, पुराने ज़माने में जिसके पैर में या लाठी में घूँघरू बँधे होते थे</ref> भी फिरता है जा बजा ।बांधे कोई रुमाल हैं रोटी के वास्ते।सब कश्फ़ और इस कमाल हैं रोटी के सिवा ग़ौर से देखो तो जा बजा ।।वास्ते॥ सौ-सौ तरह के नाच जितने हैं रूप सब यह दिखाती हैं रोटियाँ ।।12।।रोटियां॥11॥
रोटी के नाच तो हैं सभी ख़ल्क में बड़े ।से नाचे प्यादा क़वाइद दिखा दिखा।कुछ भाँड भगतिए ये नहीं फिरते नाचते ।।असवार नाचे घोड़े का कावा लगा लगा॥ये रण्डियाँ जो नाचें हैं घूँघट घुंघरू को मुँह पे ले ।घूँघट न जानो दोस्तो ! तुम जिनहारबांधे पैक<ref>हरगिजपत्रवाहक, कदापिडाकिया। उस काल में डाकिया अपने पैर या लाठी में घुंघरू बांधते थे</ref> इसे ।।भी फिरता है जा बजा। उस पर्दे में ये अपनी कमाती और इस सिवाजो ग़ौर से देखा तो जा बजा॥सौ सौ तरह के नाच दिखाती हैं रोटियाँ ।।13।।रोटियां॥12॥
अशराफ़ों<ref>कुलीन, खानदानी</ref> ने जो अपनी ये जातें यह ज़ातें छुपाई हैं ।हैं।सच पूछिएपूछिये, तो अपनी ये यह शानें बढ़ाई हैं ।।हैं॥कहिए कहिये उन्हीं की रोटियाँ रोटियां कि किसने खाई हैं ।हैं।अशराफ़<ref>शरीफ़ का बहुवचन, कुलीन, खानदानी</ref> सब में कहिए, तो अब नानबाई हैं ।।नान बाई हैं॥ जिनकी दुकान से हर कहीं जाती हैं रोटियाँ ।।15।।रोटियां॥15॥
रोटी का अब अज़ल से हमारा तो है ख़मीर ।ख़मीर।रूखी भी रोटी हक़ में हमारे है शहद-ओ-शीर ।।शहदो शीर॥या पतली होवे मोटी ख़मीरी हो या फ़तीर<ref>गुंधे हुए आटे की लोई</ref> ।गेहूँगेहूं, ज्वार, बाजरे की जैसी भी हो ‘नज़ीर‘ ।।‘नज़ीर’॥ हमको तो सब तरह की ख़ुश आती हैं रोटियाँ ।।18।।रोटियां॥18॥
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