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{{KKRachna
|रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी
|संग्रह=नज़ीर ग्रन्थावली-2 / नज़ीर अकबराबादी
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<poem>
यारो सुनो ! ये यह दधि के लुटैया का बालपन ।बालपन।और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन ।।बालपन॥मोहन-सरूप निरत करैया का बालपन ।बालपन।बन-बन के ग्‍वाल गौएँ ग्वाल गोएँ चरैया का बालपन ।।बालपन॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन ।बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।1।। बालपन॥1॥
ज़ाहिर में सुत वो नंद वह नन्द जसोदा के आप थे । थे।वरना वर्ना वह आप माई थे और आप बाप थे ।। थे॥परदे पर्दे में बालपन के यह उनके मिलाप थे । थे।जोती सरूप कहिए जिन्‍हें कहिये जिन्हें सो वह आप थे ।। थे॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।2।। बालपन॥2॥
उनको तो बालपन से न था काम कुछ ज़रा । ज़रा।संसार की जो रीति थी उसको रखा बचा ।।बजा॥मालिक थे वो वह तो आपी उन्‍हें उन्हें बालपन से क्‍या । क्या।वाँ वां बालपन, जवानी, बुढ़ापा, सब एक सा ।।था॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।3।। बालपन॥3॥
मालिक जो होवे उसको सभी ठाठ याँ सरे ।यां सरे।चाहे वह नंगे पाँव पांव फिरे या मुकुट धरे ।।धरे॥सब रूप हैं उसी के वह जो चाहे सो करे ।करे।चाहे जवाँ जवां हो, चाहे लड़कपन से मन हरे ।।हरे॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।4।। बालपन॥4॥
बाले हो ब्रज व्रज राज जो दुनियाँ दुनियां में आ गए ।गए।लीला के लाख रंग तमाशे दिखा गए ।।गए॥इस बालपन के रूप में कितनों को भा गए । गए।इक यह भी लहर थी कि जहाँ जहां को जता गए ।। गए॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।5।। बालपन॥5॥
यूँ यूं बालपन तो होता है हर तिफ़्ल <ref>बच्चा</ref> का भला ।भला।पर उनके बालपन में तो कुछ और भेद था ।।था॥इस भेद की भला जी, किसी को ख़बर है क्या ।क्या।क्या जाने अपने खेलने आए आये थे क्या कला ।।कला॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।6।।बालपन॥6॥
राधारमन तो यारो अजब अ़जब जायेगौर थे ।<ref>विचार करने योग्य</ref> थे।लड़कों में वह कहाँ कहां है, जो कुछ उनमें तौर थे ।।थे॥आप ही वह प्रभू नाथ थे आप ही वह दौर थे ।थे।उनके तो बालपन ही में तेवर कुछ और थे ।।थे॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।7।।बालपन॥7॥
वह बालपन में देखते जिधर जीधर नज़र उठा ।उठा।पत्थर भी एक बार तो बन जाता मोम सा ।।सा॥उस रूप को ज्ञानी कोई देखता जो आ ।आ।दंडवत ही वह करता था माथा झुका झुका ।।::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । ::क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।8।। परदा न बालपन का वह करते अगर ज़रा ।क्‍या ताब थी जो कोई नज़र भर के देखता ।। झाड़ और पहाड़ देते सभी अपना सर झुका ।पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था ।। झुका॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।9।। बालपन॥8॥
मोहन, मदन, गोपाल, हरी, बंस, मन हरन ।पर्दा न बालपन का वह करते अगर ज़रा।बलिहारी उनके नाम पै मेरा यह तन बदन ।।क्या ताब थी जो कोई नज़र भर के देखता॥गिरधारी, नंदलाल, हरि नाथ, गोवरधन ।झाड़ और पहाड़ देते सभी अपना सर झुका।लाखों किए बनाव, हज़ारों किए जतन ।।पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।10।।बालपन॥9॥
पैदा तो मधु पुरी में हुए श्याम जी मुरार ।मोहन, मदन, गोपाल, हरी बंस, मन हरन।गोकुल में आके नन्द के घर में लिया क़रार ।।बलिहारी उनके नाम पै मेरा यह तन बदन॥नन्द उनको देख होवे था जी जान से निसार ।गिरधारी, नन्दलाल, हरि नाथ, गोवरधन।माई जसोदा पीती थी पानी को वार वार ।।लाखों किये बनाव, हज़ारों किये जतन॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।11।।बालपन॥10॥
जब तक कि दूध पीते रहे ग्वाल ब्रज राज ।पैदा तो मधु पुरी में हुए श्याम जी मुरार।सबके गले गोकुल में आके नन्छ के कठुले थे और सबके सर के ताज ।।घर में लिया क़रार<ref>ठहराव</ref>॥सुन्दर जो नारियाँ थीं वे करती थीं कामो-काज नन्द उनको देख होवे था जी जान से निसार<ref>न्यौछावर</ref>रसिया का उन दिनों तो अजब रस का था मिज़ाज ।।माई जसोदा पीती थी पानी को वार वार॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।12।।बालपन॥11॥
बदशक्ल से तो रोके सदा दूर हटते जब तक कि दूध पीते रहे ग्वाल व्रज राज।सबके गले के कठुले थे और ख़ूबरू को देखके हँस-हँस चिमटते थे ।।सबके सर के ताज॥जिन नारियों से उनके ग़मोसुन्दर जो नारियां थीं वह करतीं थी कामो-दर्द बँटते थे ।काज।उनके रसिया का उन दिनों तो दौड़-दौड़ गले से लिपटते थे ।।अजब रस का था मिज़ाज॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।13।।बालपन॥12॥
अब घुटनियों का उनके मैं चलना बयाँ करूँ ।या मीठी बातें मुँह बदशक्ल से निकलना बयाँ करूँ ।।तो रोके सदा दूर हटते थे।या बालकों में इस तरह और खु़बरू को देखके हंस-हंस चिमटते थे॥जिन नारियों से पलना बयाँ करूँ ।उनके ग़मो-दर्द बंटते थे।या गोदियों में उनका मचलना बयाँ करूँ ।।::ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । ::क्याउनके तो दौड़-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।14।। पाटी पकड़ के चलने लगे जब मदन गोपाल ।धरती तमाम हो गई एक आन में निहाल ।।बासुक चरन छूने को चले छोड़ कर पताल ।अकास पर भी धूम मची देख उनकी चाल ।।दौड़ गले से लिपटते थे॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।15।।बालपन॥13॥
थी उनकी चाल अब घुटनियों का उनके मैं चलना बयां करूं।या मीठी बातें मुंह से निकलना बयां करूं॥या बालकों की जो अ़जब, यारो चाल-ढाल ।तरह से पलना बयां करूं।पाँवों या गोदियों में घुंघरू बाजते, सर पर झंडूले बाल ।।चलते ठुमक-ठुमक के जो वह डगमगाती चाल ।थांबे कभी जसोदा कभी नन्द लें संभाल ।।उनका मचलना बयां करूं॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।16।।बालपन॥14॥
पहने झगा गले में जो वह दखिनी चीर का ।पाटी पकड़के चलने लगे जब मदन गोपाल।गहने धरती तमाम हो गई एक आन में भर रहा गोया लड़का अमीर का ।।निहाल<ref>समृद्ध</ref>॥जाता था होश बासुक चरन छूने को चले छोड़ कर पताल।आकास पर भी धूम मची देख के शाही वज़ीर का ।मैं किस तरह कहूँ इसे चॊरा अहीर का ।। उनकी चाल॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।17।। बालपन॥15॥
जब पाँवों चलने लागे बिहारी न किशोर ।थी उनकी चाल की तो अ़जब यारो चाल-ढाल।माखन उचक्के ठहरेपांवों में घुंघरू बाजते, मलाई दही के चोर ।।सर पर झंडूले बाल॥मुँह हाथ दूध से भरे कपड़े भी शोरचलते ठुमक-बोर ।ठुमक के जो वह डगमगाती चाल।डाला तमाम ब्रज की गलियों में अपना शोर ।।थांबें कभी जसोदा कभी नन्द लें संभाल॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।18।।बालपन॥16॥
करने लगे यह धूम, पहने झगा गले में जो गिरधारी नन्द लाल ।वह दखिनी चीर का।इक आप और दूसरे साथ उनके ग्वाल बाल ।।गहने में भर रहा गोया लड़का अमीर का॥माखन दही चुराने लगे सबके जाता था होश देख भाल ।के शाहो वज़ीर का।की अपनी दधि की चोरी घर घर में धूम डाल ।।मैं किस तरह कहूं इसे छोरा अहीर का॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।19।।बालपन॥17॥
थे घर जो ग्वालिनों जब पांवों चलने लागे बिहारी न किशोर।माखन उचक्के ठहरे, मलाई दही के लगे घर चोर॥मुंह हाथ दूध से जाभरे कपड़े भी शोर-बजा ।बोर।जिस घर को ख़ाली देखा उसी घर डाला तमाम ब्रज की गलियों में जा फिरा ।।माखन मलाई, दूध, जो पाया सो खा लिया ।कुछ खाया, कुछ ख़राब किया, कुछ गिरा दिया ।।अपना शोर॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।20।। बालपन॥18॥
कोठी में होवे फिर तो उसी को ढंढोरना ।करने लगे यह धूम, जो गिरधारी नन्द लाल।गोली में हो तो उसमें भी जा मुँह को बोरना ।।इक आप और दूसरे साथ उनके ग्वाल बाल॥ऊँचा हो तो भी कांधे पै चढ़ कर न छोड़ना ।माखन दही चुराने लगे सबके देख भाल।पहुँचा न हाथ तो उसे मुरली से फोड़ना ।।दी अपनी दधि की चोरी की घर घर में धूम डाल॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।21।।बालपन॥19॥
गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई वहाँ ।थे घर जो ग्वालिनों के लगे घर से जा-बजा।और उसने आ पकड़ लिया तो उससे बोले हाँ ।।जिस घर को ख़ाली देखा उसी घर में जा फिरा॥मैं तो तेरे दही की उड़ाता था मक्खियाँ ।माखन मलाई, दूध, जो पाया सो खा लिया।खाता नहीं मैं उसकी निकाले था चूँटियाँ ।।कुछ खाया, कुछ ख़राब किया, कुछ गिरा दिया॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।22।।बालपन॥20॥
गर मारने कोठी में होवे फिर तो उसी को हाथ उठाती कोई ज़रा ।ढंढोरना।गोली में हो तो उसकी अंगिया फाड़ते घूसे लगा-लगा ।।चिल्लाते गाली देते, मचल जाते उसमें भी जा बजा ।मुंह को बोरना॥हर तरह वाँ ऊंचा हो तो भी कांधे पै चढ़ कर न छोड़ना।पहुंा न हाथ तो उसे मुरली से भाग निकलते उड़ा छुड़ा ।।फोड़ना॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।23।।बालपन॥21॥
ग़ुस्से में गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई हाथ पकड़ती जो आन कर ।वहां।और उसने आ पकड़ लिया तो उसको वह सरूप दिखाते थे मुरलीधर ।।उससे बोले हां॥जो आपी लाके धरती वह माखन कटोरी भर ।मैं तो तेरे दही की उड़ाता था मक्खियां।ग़ुस्सा वह उनका आन में जाता वहीं उतर ।।खाता नहीं मैं उसकी निकाले था चूंटियां॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।24।।बालपन॥22॥
उनको गर मारने को हाथ उठाती कोई ज़रा।तो देख ग्वालिनें जी जान पाती थीं ।उसकी अंगिया फाड़ते घूसे लगा लगा॥घर में इसी बहाने से उनको बुलाती थीं ।।चिल्लाते गाली देते, मचल जाते जा बजा।ज़ाहिर में उनके हाथ हर तरह वां से वह ग़ुल मचाती थीं ।पर्दे में सब वह किशन के बलिहारी जाती थीं ।।भाग निकलते उड़ा छुड़ा॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।25।। बालपन॥23॥
कहतीं थीं दिल गुस्से में दूध कोई हाथ पकड़ती जो अब हम छिपाएँगे ।आन कर।श्रीकिशन इसी बहाने हमें मुँह दिखाएँगे ।।तो उसको वह सरूप दिखाते थे मुरलीधर॥और जो हमारे घर में यह आपी लाके धरती वह माखन न पाएँगे ।कटोरी भर।तो उनको क्या गरज़ है यह काहे को आएँगे ।।गुस्सा वह उनका आन में जाता वहीं उतर॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।26।।बालपन॥24॥
सब मिल जसोदा पास यह कहती थी आके बीर ।अब उनको तो तुम्हारा कान्ह हुआ है बड़ा शरीर ।।देख ग्वालिनें जी जान पाती थीं।देता है हमको गालियाँ फिर फाड़ता है चीर ।घर में इसी बहाने से उनको बुलाती थीं॥छोड़े दही न दूध, न माखन, मही न खीर ।।ज़ाहिर में उनके हाथ से वह गुल मचाती थीं।पर्दे में सब वह किशन के बलिहारी जाती थीं॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।27।।बालपन॥25॥
माता जसोदा उनकी बहुत करती मिनतियाँ ।कहतीं थीं दिल में दूध जो अब हम छिपाऐंगे।और कान्ह को डराती उठा बन की साँटियाँ ।।श्रीकृष्ण इसी बहाने हमें मुंह दिखाऐंगे॥जब कान्हा जी जसोदा से करते यही बयाँ ।तुम सच और जो हमारे घर में यह माखन जानो माता, पाऐंगे।तो उनको क्या ग़रज है यह सारी हैं झूटियाँ ।।काहे को आऐंगे॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।28।।बालपन॥26॥
माता कभी सब मिल जसोदा पास यह मेरी छुंगलियाँ छुपाती हैं ।कहती थी आके बीर।जाता हूँ राह में अब तो मुझे छेड़ जाती हैं ।।तुम्हारा कान्ह हुआ है बड़ा शरीर॥आप ही मुझे रुठातीं हैं आपी मनाती हैं ।देता है हमको गालियां फिर फाड़ता है चीर।मारो इन्हें ये मुझको बहुत सा सताती हैं ।।छोड़े दही न दूध, न माखन, मही न खीर॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।29।।बालपन॥27॥
माता कभी यह मुझको पकड़ कर ले जाती हैं ।जसोदा उनकी बहुत करती मिनतियां।गाने में अपने साथ मुझे भी गवाती हैं ।।और कान्ह को डराती उठा बन की सांटियां॥सब नाचती हैं आप मुझे भी नचाती हैं ।जब कान्ह जी जसोदा से करते यही बयां।आप ही तुम्हारे पास तुम सच न जानो माता, यह फ़रयादी आती सारी हैं ।। झूटियां॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।30।। बालपन॥28॥
एक रोज़ मुँह माता कभी यह मेरी छुंगलिया छुपाती हैं।जाता हूं राह में कान्ह ने माखन झुका दिया ।पूछा जसोदा ने तो वहीं मुँह बना दिया ।।मुझे छेड़ जाती हैं॥मुँह खोल तीन लोक का आलम दिखा दिया ।आप ही मुझे रुठाती हैं आपी मनाती हैं।एक आन में दिखा दिया और फिर भुला दिया ।मारो इन्हें यह मुझको बहुत सा सताती हैं॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।31।।बालपन॥29॥
थे कान्ह जी तो नंद जसोदा के घर के माह ।माता कभी यह मुझको पकड़ कर ले जाती हैं।मोहन नवल किशोर की थी सबके दिल गाने में चाह ।।अपने सथ मुझे भी गवाती हैं॥उनको जो देखता था सो कहता था वाह-वाह ।सब नाचती हैं आप मुझे भी नचाती हैं।ऐसा तो बालपन न हुआ है किसी का आह ।।आप ही तुम्हारे पास यह फ़रयादी<ref>गुहार लेकर</ref> आती हैं॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।32।।बालपन॥30॥
एक रोज मुंह में कान्ह ने माखन झुका दिया।पूछा जसोदा ने तो वहीं मुंह बना दिया॥मुंह खोल तीन लोक का आलम दिखा दिया।एक आन में दिखा दिया और फिर भुला दिया॥ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥31॥ थे कान्ह जी तो नंद जसोदा के घर के माह।मोहन नवल किशोर की थी सबके दिल में चाह॥उनको जो देखता था सो कहता था वाह-वाह।ऐसा तो बालपन न हुआ है किसी का आह॥ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन।क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन॥32॥ सब मिलकर मिलके यारो किशन मुरारी की बोलो जै ।जै।गोबिन्द छैल कुंज बिहारी की बोलो जै ।।जै॥दधिचोर गोपी नाथ, बिहारी की बोलो जै ।जै।तुम भी 'नज़ीर' ”नज़ीर“ किशन बिहारी की बोलो जै ।।जै॥::ऐसा था बाँसुरी बांसुरी के बजैया का बालपन । बालपन।::क्या-क्या कहूँ कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।33।।बालपन॥33॥
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