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|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
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<poem>
ज़िंदगी से उम्र भर तक चलने का वादा किया
ऐ मेरी कमबख़्त साँसों ! हाय तुमने क्या किया

इब्तदा-ए-होश से अच्छा-भला पत्थर था मैं
इक नज़र बस देखकर तूने मुझे दरिया किया

एक बस ख़ामोश-से लम्हे की ख़्वाहिश ही तो थी
और उसी ख़्वाहिश ने लेकिन शोर फिर कितना किया

जब तलक कहती रहीं आँखें तो तुम चुपचाप थे
बोल उट्ठे लब तो फिर क्यूँ तुमने हंगामा किया

लुत्फ़ अब देने लगी है ये उदासी भी मुझे
शुक्रिया तेरा कि तूने जो किया, अच्छा किया

सोचता हूँ, कौन-से इल्ज़ाम और अब रह गये
हाँ ! तुझे चाहा, तुझे पूजा, तेरा सज्दा किया

दी नहीं तस्वीर अपनी तूने दीवाने को जब
यूँ किया वल्लाह उसने, ख़ुद को ही तुझ-सा किया

कब तलक आख़िर ये सहती रहती ख़्वाबों की तपिश
तंग आकर नींद ने पलकों से लो तौबा किया

यूँ तो मामूली से थे अशआर मेरे, हाँ मगर
ज़िक्र ने तेरे इन्हें दीवान का पन्ना किया




(त्रैमासिक अभिनव प्रयास, अक्टूबर-दिसम्बर 2015)
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