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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ख़बर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है
नशे में तब से चाँद है, सितारों पर ख़ुमार है
भरी-भरी निगाह से ये देखना तेरा हमें
नसों में जैसे धीमे-धीमे बज रहा गिटार है
मकाँ की बालकोनी की वो धड़कनें बढ़ा गई
अभी-अभी जो पोर्टिको में आयी नीली कार है
धुएं में इसके अब कहाँ वो स्वाद है तेरे बिना
चला भी आ कि दिन हुये, जला नहीं सिगार है
बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
न भाये अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है
वो कब की सैर कर के जा चुकी शिकारे से मगर
न जाने क्यों अभी भी डल में चुप खड़ा चिनार है
जो मॉनसून अब के इस तरफ़ न आए, ग़म नहीं
तेरी हँसी ही मेरे वास्ते हसीं फुहार है
सुलगती ख़्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलायें और
कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो ज़ार-ज़ार है
गये वो दिन कि तेरे तीरे-नीमकश में बात थी
ख़लिश तो दे है तीर, जो जिगर के आर-पार है
(नई ग़ज़ल, अक्टूबर-दिसम्बर 2009)
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ख़बर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है
नशे में तब से चाँद है, सितारों पर ख़ुमार है
भरी-भरी निगाह से ये देखना तेरा हमें
नसों में जैसे धीमे-धीमे बज रहा गिटार है
मकाँ की बालकोनी की वो धड़कनें बढ़ा गई
अभी-अभी जो पोर्टिको में आयी नीली कार है
धुएं में इसके अब कहाँ वो स्वाद है तेरे बिना
चला भी आ कि दिन हुये, जला नहीं सिगार है
बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
न भाये अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है
वो कब की सैर कर के जा चुकी शिकारे से मगर
न जाने क्यों अभी भी डल में चुप खड़ा चिनार है
जो मॉनसून अब के इस तरफ़ न आए, ग़म नहीं
तेरी हँसी ही मेरे वास्ते हसीं फुहार है
सुलगती ख़्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलायें और
कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो ज़ार-ज़ार है
गये वो दिन कि तेरे तीरे-नीमकश में बात थी
ख़लिश तो दे है तीर, जो जिगर के आर-पार है
(नई ग़ज़ल, अक्टूबर-दिसम्बर 2009)