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<poem>
उड़ो परिंदे!
पा लो ऊँचे शिखर
इतना याद रहे
बस मर्याद रहे!
जो तुम दोगे
वही मैं लौटाऊँगी
बिन रस, गागर
कैसे छलकाऊँगी?
सज़ा दी मुझे
मेरा क्या था गुनाह
गीत आशा के ही गा
तू भरना न आह!
आई जो भोर
बुझा दिए नभ ने
लुटाया धरा पर
किरणों से छूकर।
मन -देहरी
आहट सी होती है
संग लिये कविता
मैंनें द्वार खोले हैं।
अकेली चली
हवा मन उदास
चन्दन औ' सुमन
सुगंध सखी हुई।
मन से छुआ
अहसास से जाना
इसी आस जीकर
मुझको मिट जाना।
बूँद-बूँद को
समेट कर देखा
खिला रही कलियाँ
चमन खिल गया।
जीवन-रथ
विश्वास प्यार संग
है सुगम, दुखों की
बात ही क्या कहिए।
मेरे मोहना
उस पार ले चल
मिटे अज्ञान सारा
ऐसे मुझे मोह ना।
गीत बनेंगे
बस दो मीठे बोल,