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दायरों और मापदण्डों मुझे फूलों की तरह हल्के कुछ शब्द चाहिएनिर्दोष, पवित्र, मासूम शब्दजो उठा सकें बोझमेरी भावनाओं का इतिहास नया तो नहींसदियों से धरती की उपाधि से गर्वित मनजिनके सहारे मैंजी सकूँ हमारा रिश्ताशायद ये भारी-भरकम शब्दजो तैर रहें होते हैं हमारे बीचइस सच से अनजान भी नहींहमें दूर कर देते हैं हर बारकि जननी भोग्या भी बन सकती हैथोड़ा और।
पुराने मानकों से निवृति पाए बिनाबौद्धिकता का एकअब नहीं पनप सकता है प्रेमछद्म आवरणमाना कि बोए गए सृजन के बीजलेकिन इनकार करती छीन लेता है वह धरती होने सेजिस पर किया जा सके स्वामित्वरिश्तों की गर्माहटजिसे काटा जोता और बोया जा सकेहम ठिठुरते रह जाते हैंजिसे ख़रीदा और बेचा जा सकेशब्दों के बनते-बिगड़तेजिसे रौंदा जा सके निर्मम पद प्रहारों सेसमीकरण के साथऔर फ़सल नहीं आए तोचस्पाँ कर दिया जाएबंजर का तमगा।नितान्त अकेले।
दायरे तब भी रहेंगेकितनी सहज रही होगी ज़िन्दगीमापदण्ड तब भी तय किए जाएँगेआदम और हव्वा कीज्ञान का वर्जित फल चख़ने से पहलेविभक्त भावनाएँ तो तब भी होगी वोरही होंगीतमाम स्नेह-बन्धनों मेंउद्दात, प्रेममयीलेकिन ये सुकून रहेगानफ़रत, क्रोध, ईर्ष्याउसने ख़ुद को खोया सब कुछ तो रहा होगालेकिन नहीं हैढोना होता होगा उन्हेंविशेषणों के आडम्बर मेंकृत्रिम शब्दों का बोझधरती होने आती होगी उनमें से इनकार करनाविद्रोह नहीं है उसकाबनेले फूलों-सी ही गन्धबस एक भरोसा हैऐसे फूल जिन्हेंमाली की निरन्तर देखरेख मेंगमलों में नहीं उगाया जाताजो ख़ुद को दिया हुआही उग आते हैंकि उसका 'स्वत्व 'सुरक्षित हैअपनी मिट्टी, अपनी रोशनीकि उसने सहेज रखा हैऔर अपने ही आकाश के सहारेख़ुद को मुझे भीऐसे ही शब्द उगाने हैंसब कुछ होते हुए भीमेरे और तुम्हारे लिएउधार के शब्दों सेनहीं लौटा सकूँगीज़िन्दगी का वो पहले बकायाजो मुझे तुम्हारे साथ रहकर ही लौटाना है इक इंसानहर परिभाषा, दायरे और मानकों से परे
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