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कवि / हरमन हेस

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मात्र मुझ पर, अकेले मुझ पर,
रात्रि के अनंत सितारे चमकते हैं,
पहाडों से उतरता झरना अपना जादुई संगीत सुनाता है
मात्र मुझ को, अकेले मुझ पर
मंडराते बादलों की रंगीन छायाएं
सपनों की तरह घूमती हैं खुले ग्रामीण इलाकों के ऊपर
न तो घर है और न ही खेत,
न तो वन और न ही शिकार के विशेषाधिकार, मुझे दिये गये हैं
मेरा क्‍या है किसी को पता नहीं,
जंगल की छाया के पीछे बहती पतली सी धार,
उमडता समुद्र,
खेलते बच्‍चों का पक्षियों की तरह शोर करना,
संध्‍या के एकांत में प्‍यार में डूबे आदमी का चुपचाप रोना ओर गाना।
देवताओं के मंदिरों मेरे हैं, और अतीत का भव्‍य बागीचा मेरा है।
और इससे कम क्‍या होगा, कि चमकीले
भविष्य में स्वर्ग की गुंबद के साये में मेरा घर होगा:
लालसा के तूफानों से भरी मेरी आत्मा अक्‍सर उछाल मारती है,
महामहिमों के भविष्य पर टकटकी लगाए,
प्यार, कानून को अपने आवेग में डुबोता, आदमी से आदमी का प्‍यार।
मैं इसे फिर प्राप्‍त करता हूं, सदिच्‍छा से बदलता हुआ:
किसान, राजा, बनिया, व्यस्त नाविकों
गडेरिेये और माली, उन सभी के साथ
कृतज्ञता पूर्वक भविष्य की दुनिया का त्योहार मनाता।
बस एक कवि छूट रहा है,
अकेला एक वही है जो तलाश में है ,
मानवीय लालसा का वाहक, एक धूसर आकृति
जिसकी भविष्‍य को फिलहाल कोई जरूरत नहीं है। कई फूलमालाएं
उसकी कब्र पर मुरझा चुकी हैं ,
लेकिन सचमुच उसे कोई याद नहीं करता।

1911

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