लेखक: [[शिवमंगल सिंह सुमन]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=शिवमंगल सिंह सुमन]]|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>जीवन में कितना सूनापनपथ निर्जन है, एकाकी है,उर में मिटने का आयोजनसामने प्रलय की झाँकी है
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~वाणी में है विषाद के कणप्राणों में कुछ कौतूहल हैस्मृति में कुछ बेसुध-सी कम्पनपग अस्थिर है, मन चंचल है
जीवन यौवन में कितना सूनापन<br>मधुर उमंगें हैंपथ निर्जन कुछ बचपन है, एकाकी नादानी है,<br>उर में मिटने मेरे रसहीन कपालो परकुछ-कुछ पीडा का आयोजन<br>सामने प्रलय की झाँकी पानी है<br><br>
वाणी आंखों में है विषाद के कण<br>अमर-प्रतीक्षा हीप्राणों में कुछ कौतूहल बस एक मात्र मेरा धन है<br>स्मृति मेरी श्वासों, निःश्वासों में कुछ बेसुध-सी कम्पन<br>पग अस्थिर है, मन चंचल आशा का चिर आश्वासन है<br><br>
यौवन में मधुर उमंगें हैं<br>मेरी सूनी डाली पर खगकुछ बचपन है, नादानी है<br>कर चुके बंद करना कलरवमेरे रसहीन कपालो पर<br>जाने क्यों मुझसे रूठ गयाकुछ-कुछ पीडा मेरा वह दो दिन का पानी है<br><br>वैभव
आंखों में अमरकुछ-प्रतीक्षा ही<br>कुछ धुँधला सा है अतीतबस एक मात्र मेरा धन भावी है<br>व्यापक अन्धकारमेरी श्वासों, निःश्वासों में<br>उस पार कहां? वह तो केवलआशा मन बहलाने का चिर आश्वासन है<br><br>विचार
मेरी सूनी डाली पर खग<br>आगे, पीछे, दायें, बायेंकर चुके बंद करना कलरव<br>जल रही भूख की ज्वाला यहाँजाने क्यों मुझसे रूठ गया<br>तुम एक ओर, दूसरी ओरमेरा वह दो दिन का वैभव<br><br>चलते फिरते कंकाल यहाँ
कुछ-कुछ धुँधला सा है अतीत<br>इस ओर रूप की ज्वाला मेंभावी है व्यापक अन्धकार<br>जलते अनगिनत पतंगे हैंउस पार कहां? वह तो केवल<br>ओर पेट की ज्वाला सेमन बहलाने का है विचार<br><br>कितने नंगे भिखमंगे हैं
आगे, पीछे, दायें, बायें<br>इस ओर सजा मधु-मदिरालयजल रही भूख की ज्वाला यहाँ<br>हैं रास-रंग के साज कहींतुम एक ओर, दूसरी उस ओर<br>असंख्य अभागे हैंचलते फिरते कंकाल यहाँ<br><br>दाने तक को मुहताज कहीं
इस ओर रूप की ज्वाला में<br>अतृप्ति कनखियों सेजलते अनगिनत पतंगे हैं<br>सालस है मुझे निहार रहीउस ओर पेट की ज्वाला से<br>साधना पथ परकितने नंगे भिखमंगे हैं<br><br>मानवता मुझे पुकार रही
इस ओर सजा मधु-मदिरालय<br>तुमको पाने की आकांक्षाहैं रास-रंग के साज कहीं<br>उनसे मिल मिटने में सुख हैउस ओर असंख्य अभागे हैं<br>किसको खोजूँ, किसको पाऊँदाने तक को मुहताज कहीं<br><br>असमंजस है, दुस्सह दुख है
इस ओर अतृप्ति कनखियों से<br>बन-बनकर मिटना ही होगासालस जब कण-कण में परिवर्तन है मुझे निहार रही<br>उस ओर साधना पथ पर<br>संभव हो यहां मिलन कैसेमानवता मुझे पुकार रही<br><br>जीवन तो आत्म-विसर्जन है
तुमको पाने की आकांक्षा<br>उनसे मिल मिटने में सुख है<br>किसको खोजूँ, किसको पाऊँ<br>असमंजस है, दुस्सह दुख है<br><br> बन-बनकर मिटना ही होगा<br>जब कण-कण में परिवर्तन है<br>संभव हो यहां मिलन कैसे<br>जीवन तो आत्म-विसर्जन है<br><br> सत्वर समाधि की शय्या पर<br>अपना चिर-मिलन मिला लूँगा<br>जिनका कोई भी आज नहीं<br>मिटकर उनको अपना लूँगा ।<br><br>लूँगा।