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किसलिए बता वन-उपवन मे में तू घूम रहा मारा-मारा
सब गीत धरे रह जायेंगे टूटेगा जिस दिन इकतारा
हर घाट-घाट पनघट-पनघट घूमा फिर भी घट खाली है
यह प्यास नहीं केवल तेरे दुर्बल मन की कंगाली है
तेरा तीरथ तो घट मे में है बाहर छलकी अंधियारी है यह राग सांस साँस की सरगम का घर जाने की तय्यारी हैजब तक प्रतिबिम्ब लगे मैला,दर्पण को रख अपने आगे
पूजा का दीपक बनकर जल जब तक न मौन प्रतिमा त्यागे
है तेरे पीछे लगा हुआ कबसे मरघट का अंगारा
किसलिए...
तप की ज्वाला से दूर न जा प्रभु से अंतर बढ जायेगा
जीवन की गीता एक दिवस अक्षर-अक्षर हो जाएगी
तेरे यश-गौरव की गाथा धीरे-धीरे सो जाएगी
माटी मे खोएगी माटी,सूरज भी क़र्ज़ चुकाएगा जल अपना कण-कण छीनेगा,ले प्राण पवन उड़ जायेगा
तेरी काया का ताजमहल हो जायेगा पारा-पारा
हाथों से दान किया कितना आँखों से क्या-क्या काम लिया
कानों से क्या-क्या सुना बता,वाणी से क्या गुणगान किया
यह चरण ले गए कहाँ तुझे तेरे आचरण बताएँगे
यदि सदुपयोग किया होगा तो यह फिर भी मिल जायेंगे
किसलिए...
खिलकर झर जाएगा गुलाब,पागल सुगंध हो जायेगी
तू बना रहा जिसका माली सारी बगिया मुरझायेगी
मन की दासी इन्द्रियाँ सभी संयमी बनी सो जाएँगी
आड़ी-तिरछी सब रेखाएं उस दिन सीधी हो जायेंगी
कितना खोया,कितना पाया,कितना रोया कितना गाया
तू लगा रहा अपनी धुन मे जीवन भर समझ नहीं पाया
अंतिम क्षण तेरे नैनों मे होगा आंसू खारा-खारा