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सुदँती के मुसकात यों अधरन आभा होति।
मानहु मानिक पै परा आइ दामिनी जोति॥77॥
'''हास-वर्णन'''
ललन कपट सौतिन गरब हास कियो सब नास।
चंद्रहास सम भासई चंद्रमुखी को हास॥78॥
दंतकथा वा हसन की अवर कहो नहि जात।
फूलझरी सी छुटत जब हँसि हँसि बोलति बात॥79॥
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