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<poem>
दिलों में फिर वो पहले पहली सी, मोहब्बत हो अगर पैदायकीनन यक़ीनन हो नहीं सकता, जहाँ में कोई शर<ref>फसाद</ref> पैदा फ़जाओं फज़ाओं में जो तल्ख़ी<ref>कड़वाहट</ref> है जला कर खाक़ ख़ाक कर डालोशजर<ref>वृक्ष</ref> बुझाओ फिर उसे ऐसे लगाओ जिनपे हों मीठे समर<ref>फल</ref> , न हो कोई शरर पैदा
कहो वो बात जो कानो से, सीने में उतर जाए
असर दिल पे पर जो कर जाए, करो ऐसी नज़र पैदा सिवाए ख़ार के हासिल न होगा कुछ बबूलों सेशजर ऐसे लगाओ जिनपे हों मीठे समर पैदा
इलाजे रंजो-ग़म वो ही, करेगा अब मुसीबत में
दिया है दर्दे दिल जिसने, किया दर्दे जिगर पैदा
तेरे भटके हुए बन्दों को, जो रस्ता दिखा जायें
कुछ ऐसे लोग दुनिया में, ख़ुदाया फिर से कर पैदा