मैं क्यों भूल गयी थी कि <br>
मेरे लीलाबन्धु, मेरे सहज मित्र की तो पद्ध्ति पद्धति ही यह है <br>
कि वह जिसे भी रिक्त करना चाहता है <br>
उसे सम्पूर्णता से भर देता है । <br>
यह मेरी मांग क्या मेरे-तुम्हारे बीच की<br>
अन्तिम पार्थक्य रेखा थी,<br>
क्या इसी लिए इसीलिए तुमने उसे आम्र मंजरियों से<br>
भर-भर दिया कि वह<br>
भर कर भी ताजी, क्वाँरी, रीती छूट जाए!<br><br>
वह आम की ताजी, क्वाँरी, तुर्श मंजरी मैं ही थी<br>
और तुम ने मुझ से ही मारी माँग भरी थी!<br><br>
यह क्यों मेरे प्रिय!<br>
क्या इस लिए इसलिए कि तुमने बार-बार यह कहा है<br>
कि तुम अपने लिए नहीं<br>
मेरे लिए मुझे प्यार करते हो<br>
और जब तुम ने कहा कि, “माथे पर पल्ला डाल लो!”<br>
तो क्या तुम चिता चिंता रहे थे<br>
कि अपने इसी निजत्व को, अपने आन्तरिक अर्थ को<br>
मैं सदा मर्यादित रक्खूँ, रसमय और<br>