[[रघुवरजी थारी सूरत/अज्ञात]]     रघुवरजी थारी सूरत प्यारी लागे म्हारा श्याम , उमरावजी ओ म्हारा राम ....  शीश किलंगी पाघड़ी रतन जड़ित सिर पेंच  कुण्डल झलकत कान कविता कोश में ले सब को मन खेंच  रघुनन्दन थारी चितवन प्यारी लागे म्हारा राम उमरावजी ओ म्हारा राम ....   गल कंठो हीरा जड्यो गज मोतियन की माल  बींटी, मेहँदी ,काँगड़ी शोभा बनी रसाल  सियावरजी थारो लटको प्यारो लागे म्हारा राम उमरावजी ओ म्हारा राम ....  अचकन झिलमिल कर रही दे रही अजब बहार  दुपटो जरी की बेल को झलकत कौर किनार  दशरथसूत थारी चलगत प्यारी लागे म्हारा राम उमरावजी ओ म्हारा राम ....  सीता की शोभा घणी, म्हासूं कही न जाए  प्रगट भई घर जनक के श्रीमुख दियो दिखाए  केसरिया थारी जोड़ी प्यारी लागे म्हारा राम उमरावजी ओ म्हारा राम ....भजन