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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=गोरख पाण्डेय|संग्रह=स्वर्ग से बिदाई / गोरख पाण्डेय}} समय का पहिया चले रे साथी <br>समय का पहिया चले <br>फ़ौलादी घोंड़ों की गति से आग बरफ़ में जले रे साथी<br>समय का पहिया चले<br>रात और दिन पल पल छिन <br>आगे बढ़ता जाय<br>तोड़ पुराना नये सिरे से <br>सब कुछ गढ़ता जाय<br>पर्वत पर्वत धारा फूटे लोहा मोम सा गले रे साथी<br>समय का पहिया चले<br>उठा आदमी जब जंगल से <br>अपना सीना ताने<br>रफ़्तारों को मुट्ठी में कर <br>पहिया लगा घुमाने<br>मेहनत के हाथों से <br>आज़ादी की सड़के ढले रे साथी<br>समय का पहिया चले (अधूरी है)<br>