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[[ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ती]] moved to [[ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ति]]
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|रचनाकार=जयशंकर प्रसादमृदुल कीर्ति
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[[Category:लम्बी रचना]]
[[Category:उपनिषद]]
[[Category:हरिगीतिका]]
'''ॐ'''<br><br>'''समर्पण'''<br><br>परब्रह्म को<br>उस आदि शक्ति को,<br>जिसका संबल अविराम,<br>मेरी शिराओ में प्रवाहित है।<br>उसे अपनी अकिंचनता,<br>अनन्यता<br>एवं समर्पण<br>से बड़ी और क्या पूजा दूँ ?<br><br> '''शान्ति मंत्र'''<br><br><span class="upnishad_mantra">पूर्ण मदः पूर्ण मिदं पूर्णात पूर्ण मुदचत्ये,<br>पूर्णस्य पूर्ण मादाये पूर्ण मेवावशिश्यते<br><br></span> <span class="mantra_translation">परिपूर्ण पूर्ण है पूर्ण प्रभु, यह जगत भी प्रभु पूर्ण है,<br>परिपूर्ण प्रभु की पूर्णता से पूर्ण जग सम्पूर्ण है,<br>उस पूर्णता से पूर्ण घट कर पूर्णता ही शेष है,<br>परिपूर्ण प्रभु परमेश की यह पूर्णता ही विशेष है।<br></span> * [[मंत्र 1-5 / ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्तीकीर्ति]]* [[मंत्र 6-10 / ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्तीकीर्ति]]* [[मंत्र 11-15 / ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्तीकीर्ति]]* [[मंत्र 16-18 / ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्तीकीर्ति]]