गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
आगे माई सतगुरु खोज करहु सब मिलिके / मेँहीँ जी
No change in size
,
23:04, 20 अक्टूबर 2016
सतगुरु सत उपकारि जिवन के, राखैं जिवन सुख चाह।
होइ दयाल जगत में आवैं, खोलैं चेतन सुख राह॥आगे.॥
परगट सतगुरु जग
मंे
में
विराजैं, मेटयँ जिवन दुख दाह।बाबा देवी साहब जग
मंे
में
कहावयँ, ‘मेँहीँ’ पर मेहर निगाह॥आगे.॥
</poem>
Lalit Kumar
Founder, Mover, Uploader,
प्रशासक
,
सदस्य जाँच
,
प्रबंधक
,
widget editor
21,911
edits