भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'''विस्तृत परिचय'''
श्यामलाल चतुर्वेदी का जन्म सन् 1926 में कोटमी गांव, जिला बिलासपुर में हुआ था, वे छत्तीसगढ़ी के गीतकार भी हैं। उनकी रचनाओं में "बेटी के बिदा" बहुत ही जाने माने हैं। उनको बेटी को बिदा के कवि के रुप में लोग ज्यादा जानते हैं। उनकी दूसरी रचनायें हैं - "पर्रा भर लाई", "भोलवा भोलाराम बनिस", "राम बनबास" ।
अप्रतिम वक्ताः
वे पत्रकारिता भी करते हैं। "विप्रजी" से उन्हें बहुत प्रेरणा मिली थी। और बचपन में अपनी मां के कारण भी उन्हें लिखने में रुची हुई। उनकी मां नें बचपन में ही उन्हें सुन्दरलाल शर्मा के "दानलीला" रटा दिये थे। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ी साहित्य के मूल, छत्तीसगढ़ की मिट्टी, वहाँ के लोकगीत, लोक साहित्य। उनकी "जब आइस बादर करिया" जमीन से जुड़ी हुई है
पं. श्यामलाल जी की सबसे बड़ी पहचान उनकी भाषण-कला है। वे बिना तैयारी के डायरेक्ट दिल से बोलते हैं। हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषाओं का सौंदर्य, उनकी वाणी से मुखरित होता है। उन्हें सुनना एक विलक्षण अनुभव है। हमारे पूज्य गुरूदेव स्वामी शारदानंद जी उन्हें बहुत सम्मान देते हैं और अपने आयोजनों में आग्रह पूर्वक श्यामलाल जी को सुनते हैं। श्यामलाल जी अपनी इस विलक्षण प्रतिभा के चलते पूरे छत्तीसगढ़ में लोकप्रिय हैं। वे किसी बड़े अखबार के संपादक नहीं रहे, बड़े शासकीय पदों पर नहीं रहे किंतु उन्हें पूरा छत्तीसगढ़ पहचानता है। सम्मान देता है। चाहता है। उनके प्रेम में बंधे लोग उनकी वाणी को सुनने के लिए आतुर रहते हैं। उनका बोलना शायद इसलिए प्रभावकारी है क्योंकि वे वही बोलते हैं जिसे वे जीते हैं। उनकी वाणी और कृति मिलकर संवाद को प्रभावी बना देते हैं।