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पानी असन नहावन!
अब सरहा पतरी के दाम ह
रूपिया ले अतकावत* हे!
‘‘पानी के बस मोल’’ के मतलब
सस्ता निचट कहाथे!
सरसों अउ सूरजमुखी संग
सोयाबिन महगागय!
जमो जिनिस के दाम निखालिस*
सरग म जनव टंगागय!
घी खोवा अउ दही दूध ल
रूपिया भर म नूनहा बोरा
चार आना सेर चाऊंर!
बिना मोल कस कोदो कुटकी*साँवा* सहित बदाऊर* !
‘वार बाजरा जोंधरा जोंधरी
धनवारा* गुड़ भेली!
बटुरा मसुरी चना गहूं
सिरजइया महल हबेली!
रूपिया चार आना अठन्नी
जांगर टोर क मावंय!
ठोमा-खाँड़* पसर का चुरकी
भुरकी भर भर लावंय!
बांट बांट कुरूचारा* कस
जुरमिल के सब खावंय!
एक दूसर के सुख दुख सिरतों
जानय अउ जनावंय!
अब सौ रूपिया घलव कमा के
कल्लर-कइया* लावत हें!
</poem>
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