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खण्ड-2 / आलाप संलाप / अमरेन्द्र

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ऐसी कौन व्यथा है तुम पर, लगते थके-थके से
क्या वसन्त में देख लिया है क्रुद्ध शिशिर का सपना
क्यों विराग का रूप लिए यह घूम रहे हो अपना ?"
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