भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
ऐसी कौन व्यथा है तुम पर, लगते थके-थके से
क्या वसन्त में देख लिया है क्रुद्ध शिशिर का सपना
क्यों विराग का रूप लिए यह घूम रहे हो अपना ?"
</poem>