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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=गीत-वृंदावन / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[Category:गीत]]
<poem>
सुना जब हरि हैं जानेवाले
मथुरावासी खड़े हो गए पथ में घेरा डाले
नयनों से थे अश्रु उमड़ते
आ-आकर रथ सम्मुख अड़ते
तिल भर नहीं अश्व थे बढ़ते साँचे के-से ढाले
 
समझ भाग्य फिर ब्रज के जागे
व्रजवासी लेने को भागे
राधा नंदभवन के आगे पहुँची सब सखियाँ ले
 
मथुरा-वृन्दावन से कट कर
पर हरि गए द्वारिका-पथ पर
दोनों के दुःख हुए बराबर किसको कौन सँभाले !
 
सुना जब हरि हैं जानेवाले
मथुरावासी खड़े हो गए पथ में घेरा डाले
<poem>
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