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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|संग्रह= निशा निमंत्रण / हरिवंशराय बच्चन
}}
मुझ से चांद कहा करता है--
चोट कडी है काल प्रबल की,<br>
उसकी मुस्कानों से हल्की,<br>
राजमहल कितनी कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है,<br>
मुझसे चांद कहा करता है<br>
तू अपने दुख में चिल्लाता,<br>
तेरे दुख से कहीं कठिन दुख यह जग मौन सहा करता है<br>
मुझसे चांद कहा करता है<br>