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विदा के बाद प्रतीक्षा / दुष्यंत कुमार
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,
00:36, 8 सितम्बर 2006
परदे हटाकर करीने से<br>
रोशनदान खोलकर<br>
कमरे का
फनीर्चर
फर्नीचर
सजाकर<br>
और स्वागत के शब्दों को तोलकर<br>
टक टकी बाँधकर बाहर देखता हूँ<br>
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घनश्याम चन्द्र गुप्त