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कछुवाले अङ्गसरी खुम्च्याई बाह्य वृत्तिका तार।
भित्र अलिकति हेर्दा अर्कै रसिलो चमत्कार।।१।।
जय जगदीश्वर ! देखेँ विश्वव्यापी प्रकाश त्यो खास।
सूक्ष्म लटाई भित्रै रहेछ प्रभुको निवास वा भास।।२०।।
('पद्य-संग्रह' बाट)
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