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{{KKRachna
|रचनाकार=दीपिका केशरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जब तुम सारे क्रांतियों के बाद जीत जाओंगे
तब जीत स्वीकार करते हुऐ
तुम खुद को राजा घोषित कर लोगें !
तुम पहरे लगाओंगे
डरोंगे ,घबराओंगे
बात-बात पर चीखोंगे,
तुम बार-बार खुद के
कामयाबी का जश्न मनाओंगे !
तुम हिसाब लगाओंगे
अपनी क्रांति अपनी जीत का,
तुम कई प्रेयसी रखोंगे
पर एक से भी प्रेम न कर पाओंगे !
तुम इतने अकेले हो जाओंगे कि
तुम्हें नींद भी नहीं आएगी !
सुनो
तुम बस इतना करना कि
क्रांति की सोच को मरने मत देना
पर जीत के बाद
खुद को राजा घोषित मत करना !
</poem>
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जब तुम सारे क्रांतियों के बाद जीत जाओंगे
तब जीत स्वीकार करते हुऐ
तुम खुद को राजा घोषित कर लोगें !
तुम पहरे लगाओंगे
डरोंगे ,घबराओंगे
बात-बात पर चीखोंगे,
तुम बार-बार खुद के
कामयाबी का जश्न मनाओंगे !
तुम हिसाब लगाओंगे
अपनी क्रांति अपनी जीत का,
तुम कई प्रेयसी रखोंगे
पर एक से भी प्रेम न कर पाओंगे !
तुम इतने अकेले हो जाओंगे कि
तुम्हें नींद भी नहीं आएगी !
सुनो
तुम बस इतना करना कि
क्रांति की सोच को मरने मत देना
पर जीत के बाद
खुद को राजा घोषित मत करना !
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