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<poem>
ध्यान की मुद्रा में कोई बुद्ध नही हुआ
ध्यान ने सिद्धार्थ को जना था
और बुद्ध को चुना था
उस बुद्ध की परिणीति में दुख का निवारण था
और संघर्ष था आत्मप्रक्षेलन का

ज्ञान वृक्ष के शाखाओं ने नही दिया
न अंतः सलिला निरंजना ने
ज्ञान उस दुःख और करुणा की उपज से संयुक्त हो
गया में गुथा था एक बुद्ध को

कल्पमवंतर ने कई बुद्ध दिये है हमें
जब हम श्रद्धा में नही थे
तब भी जब हमने विश्वास करना नही सीखा था
तृष्णा में डूबे लिप्त थे व्यभिचार में
तब तब बुद्ध ने जन्म लिया था यहाँ सखी !
</poem>
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