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08:50, 17 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=टोमास ट्रान्सटोमर
|संग्रह=
}}
<Poem>
जब अँधेरा हुआ मैं स्थिर था
लेकिन मेरी परछाईं बढ़ रही थी
निराशा की ओर.
जब यह बढ़ना शुरू हुआ थमना
तब देखी मैंने एक इंसानी छवि की छवि
आगे बढ़ती हुई
शून्य में, एक पन्ना
खुला पड़ा हुआ.
जैसे कि गुजरना हुआ हो एक घर से
जो हो बहुत समय से परित्यक्त
और कोई नज़र आ जाए खिड़की पर.
एक अजनबी. वह नाविक था.
प्रतीत हुआ मानों वह देख रहा था.
समीप आया बगैर कदम बढ़ाये.
धारण किये हुए टोपी जिसका आकर
मानों हमारे गोलार्द्ध की नक़ल हो
कगार के साथ भूमध्य रेखा पर.
केश दो पंखों की तरह विभाजित थे दो भागों में.
दाढ़ी मुड़ी हुई लटक रही थी
उसके मुंह के पास वाग्मिता की तरह.
उसने अपनी दायीं भुजा मोड़ रखी थी.
वह एक बच्चे की भुजा सी पतली थी.
वह बाज जिसकी जगह होनी चाहिए थी उसकी भुजाओं पर
था ले रहा आकार
उसकी आकृति से.
वह राजदूत था.
बीच में अवरुद्ध कथन
जिसे जारी रखता है मौन
और भी अधिक बलपूर्वक.
तीन लोग उसके भीतर मौन थे.
वह तीन लोगों की छवि था.
पुर्तगाल का एक यहूदी,
जो औरों के साथ हो गया दूर रवाना,
बहते और इंतज़ार करते लोगों संग,
झुके हुए लोग होते हैं एकत्र
तीव्रगामी जहाज़ में जो कि थी
उनकी डोलती हुई भावशून्य मां.
विचित्र सी हवा में प्रथम भूदर्शन
जिसने बना दिया वातावरण खुशनुमा.
देखा गया बाज़ार में
अफ़्रीकी सांचे के निर्माता द्वारा.
लम्बे समय से उसकी आँखों के संगरोध में.
धातु की जाति में फिर से जन्मा:
"मैं उससे मिलने आया हूँ
जो उठाता है अपनी कंदील
खुद को मुझमें देखने के लिए."
'''(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)'''
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