भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
' लोग कहते हैं जो दिखता है वही बिकता है रो रही इंसानि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
लोग कहते हैं जो दिखता है वही बिकता है
रो रही इंसानियत हंसती यहाँ दरिंदगी है
ये किसकी इबादत है ये किसकी बंदगी है।
लोग कहते हैं जो दिखता है वही बिकता है
ये दिखावे की जिंदगी भी कोई जिंदगी है ।
दूसरों के ऐब गिनाना बहुत आसां है मगर
अपने अंदर कौन झांकता है कितनी गंदगी है ।
सरे बाजार नंगे हो गए वो बेच के शर्मो हया
राहगीरों की नज़र में आज तक शर्मिंदगी है ।
है इसका नाम मज़बूरी इसे मर्जी नहीं कहते
बच्चों के लिए रूह बेचना भी कोई ज़िंदगी है ।
-हम तो पीने के बाद होश में आते हैं तपिश
दो घूंट पी के होश खो देना भी कोई रिँदगी है ।
जगदीश तपिश