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जगदीश तपिश
ग़ज़ल -
जाने कैसी कैसी रस्में खूब निभाई लोगों ने ।
आ के मेरे घर में लगाई आग पराई लोगों ने ।
आते जाते नजर मिली थी मुस्कानें भी रस्मी थीं ।
ना जाने क्यों फिर भी हमपे धूल उड़ाई लोगों ने ।
हमने कब अहसान जताया कब कोई उम्मीद रखी ।
हंस के हमने टाल दिया पर बात बढ़ाई लोगों ने ।
ना कोई तारीख मुक़र्रर ना मौसम त्यौहारों का ।
उनकी गली में कत्ल हुए हम ख़ुशी मनाई लोगों ने।
ऐसा क्या गुनाह था मेरा सोच के हम हैरान रहे ।
कब्र पे आये नसीहत देने नींद उड़ाई लोगों ने ।
जगदीश तपिश
चेयरमेन
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन[आई जी ओ ]
मध्य प्रदेश /छत्तीसगढ़ राज्य प्रभारी
संपर्क -9406784999