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Kavita Kosh से
जिस शाख पर सोन चिड़िया थी, उस पर आज बाज बैठा है।
खून चूसने वाले जोकों के सर ही हमने आज ताज सजा रखा है।
खजाना लूटने वालों को ही हमने खजाने का पहरेदार बना रखाहै।नफरत की फसल बोने वाले को ही देश का कास्तकार बना रखाहै।
भारत माँ से प्यार को भी आज हमने व्यापार बना रखा है।
मुट्ठी भर लोगों ने ही समन्दर पर कब्जा जमा रखा है।
सूखी धरती पर नहीं बरसने वाले मेघों को तपन से जला देंगे।
गीतों के छंद मेरे बन जाएँ अंगार, इससे पहले उसे सरसना होगा।
बंधन तोड़, समन्दर छोड़, बादलों को आज सूखे कुओं पर बरसनाहोगा।
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