भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार = रघुवीर सहाय|संग्रह = एक समय था / रघुवीर सहाय
}}
{{KKCatKavita‎}}
<poem>
किस तरह की सरकार बना रहे हैं
यह तो पूछना ही चाहिए
किस तरह का समाज बना रहे हैं
यह भी पूछना चाहिए
किस तरह हमारे घरों की सरकार बना रहे हैं<br>लड़कियों को देखिएयह तो पूछना ही चाहिए<br>हर समय स्त्री बनने के लिए तैयारकिस तरह का समाज बना रहे हैं<br>यह भी पूछना चाहिए<br><br>सजी बनी
हमारे घरों हिन्दुस्तानी अमीर की लड़कियों को देखिए<br>भूखहर समय स्त्री बनने के लिए तैयार<br>कितनी घिनौनी होती हैसजी बनी<br><br>बड़े बड़े जूड़े काले चश्मेपाँव पर पाँव चढ़ाएहवाई अड्डे पर एक लूट की गंध रहती हैचिकने गोल-गोल मुँहअँग्रेज़ी बोलने की कोशिश करते हुए
हिन्दुस्तानी अमीर की भूख<br>कितनी घिनौनी होती है<br>बड़े बड़े जूड़े काले चश्मे<br>पांव पर पांव चढ़ाए<br>हवाई अड्डे पर एक लूट की गंध रहती है<br>चिकने गोल गोल मुंह<br>अंग्रेज़ी बोलने की कोशिश करते हुए<br><br> हर क़िस्म का भारतीय अमीर होकर<br>एक क़िस्म का चेहरा बन जाता है<br>और अगर विलायत में रहा हो तो<br>उसका स्वास्थ्य इतना सुधर जाता है<br>कि वह दूसरे भारतीयों से<br>भिन्न दिखाई देने लगता है<br>उनमें से कुछ ही थैंक्यू अंग्रेज़ी अँग्रेज़ी ढंग से कह पाते हैं<br>बाक़ी अपनी -अपनी बोली के लहज़े लपेट कर छोड़ देते हैं.हैं।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,616
edits