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लोकतन्त्र का मान / विपिन चौधरी
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21:43, 18 नवम्बर 2017
<poem>
कम्बल से एक आँख बाहर निकाल कर हम बाशिन्दों ने
इन
सफेद
सफ़ेद
पाजामाधारी मदारियों के जमघट का तमाशा ख़ूब देखा
सावधानी से छोटे-छोटे क़दमो से ये नट उछल-कूद का अद्भुत तमाशा दिखाते
इनके मज़ेदार तमाशे का लुत्फ़ उठाकर घर की राह पकड़ते
अनिल जनविजय
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