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14:34, 20 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अदोनिस
|अनुवादक=अनुपमा पाठक
|संग्रह=
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<poem>
मैं अपने शरीर के बाहर यात्रा करता हूँ, और मेरे भीतर ऐसे महाद्वीप हैं
जिन्हें मैं नहीं जानता. मेरा शरीर
अपने बाहर एक शाश्वत गति है.
मैं नहीं पूछता: कहाँ से? या कहाँ थे तुम? मैं पूछता हूँ, कहाँ जाता हूँ मैं?
रजकण मुझे देखते हैं और परिवर्तित कर देते हैं रजकण में,
जल देखता है मुझे और अपना सहजात बना लेता है.
वास्तव में, कुछ भी शेष नहीं बचता गोधूलि बेला में सिवाए स्मृतियों के.
</poem>