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अनवर चाचा / सपना चमड़िया

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जब भी
दिल्ली आते हैं
बिहू को दो बड़ी ​​
चॉकलेट
और सौ रुपए
दे कर जाते हैं
माँ से कहते हैं
प्रणाम, आप कैसी हैं
और बाबा से
का हो कइसन बा ड़ा
कह कर हाथ मिलाते हैं
अनवर चाचा
बिहू को
बाबा जैसे ही
लगते, भाते हैं
उन्हीं की तरह
लुंगी पहन कर
काली चाय सुड़कते जाते हैं
अख़बार किताबें
बिखेर कर
माँ का काम
बढ़ाते जाते हैं
खुद चिल्लाते हैं
जोर जोर से
बातें करते हैं
और मैं बोलूँ तो
डांट पिलाते हैं।
अनवर चाचा
और बाबा
घंटों बतियाते हैं
देर रात तक
साथ निभाए जाते हैं।
अनवर चाचा
अक्सर दिल्ली आते हैं।
जो सौ रुपए वो
बिहू को देकर जाते हैं
उनसे कभी गुड़िया
कभी किताबें ले कर
बिहू ख़ूब धनवान
हुई जा रही थी
कि
उसकी एस एस टी की
किताब ने उसे
पाठ पढ़ाया
कि हिन्दू-मुस्लिम
दो अलग-अलग जातियाँ हैं।
और मैम ने बताया
हम दिवाली और वो
ईद मनाते हैं
हमारे नाम होते हैं
फलां-फलां
और उनके अला-बला।
अनवर चाचा
जब इस बार आए
बिहू कुछ उदास थी
हालांकि चॉकलेट
उतनी ही मीठी
और सौ का नोट
बहुत कड़क
तब बिहू ने चॉकलेट और नोट
एस एस टी​​

की किताब में दबा दिए
और कहा
अनवर चाचा से
आप दिल्ली जल्दी जल्दी
क्यूँ नहीं आते हैं
मैं अपनी किताब
का मुँह
चॉकलेट से भर देना चाहती हूँ।

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