भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मैं व्याख्या करता हूँ ये मेरे हाथ हैं
 
इन हाथों की
 
मैं नहीं जानता कहाँ से आती है आवाज़
 
कुछ चीज़ें चींटियों की तरह चल कर आती हैं
 
हाथ इंतजार में थक जाते हैं
 
कुछ चीज़ें तेज़ी से उड़ती हुयी ऊपर से गुज़र जाती हैं
 
हाथ देखते रह जाते हैं
 मैंने देख कर सारी रफ्तारॅ रफ़्तार देख ली है ज़माने की रफ्तार रफ़्तार  
मैं व्याख्या करता हूँ ये मेरी आँखे हैं
 इन आंखों आँखों की  
ये आँखे सब कुछ देखने को तैयार हैं
 
देखिये ये आँखे देख रही हैं - समय का चक्का घूम रहा है
 
मैं नहीं जानता कहाँ से आती है आवाज़
 
मैं व्याख्या करता हूँ देखिये ये मेरा गला है
 
मैं यहाँ से बोलना चाहता हूँ
 
पर यह गला बहुत डरता है अपने ही हाथों से !
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,691
edits