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वह अब भी ढो रही है / कविता भट्ट
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13:59, 12 फ़रवरी 2018
आडम्बर के संस्कारों में जीवन डुबो रही है।
क्या लौहनिर्मित है यह सिर या कमर?
जिस पर पहाड़ी नारी पशुवत् बोझे ढो रही है।
वीरबाला
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