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Kavita Kosh से
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
जो अभी भी दौड़ जाएँ,
जो अभी भी खिल-खिलाएँखिलखिलाएँ,
मौत के आगे न हिचकें,
और माँ ने कहा होगा,
दुःख कितना बहा होगा,
आँख में किस लिए किसलिए पानी,
वहाँ अच्छा है भवानी,
वह तुम्हारा मन समझ करसमझकर,और अपनापन समझ करसमझकर,
गया है सो ठीक ही है,
यह तुम्हारी लीक ही है,
मैं न रोऊँगा,—कहा होगा,
और फिर पानी बहा होगा,
दृश्य उसके बद बाद का रे,
पाँचवें की याद का रे,
दिशा के मन में समाई,
दश-दिशा चुपचाप है रे,
स्वस्थ मन की छाप है रे,
झाड़ आँखें बन्द करके,
घाव उर के खोलता है,
आदमी के उर बिचारे,
तू ज़रा-सा दुःख कितना,
दे रहा है क्लेश मुझको,
देह एक पहाड़ जैसे,
मन की बाड़ बड़ का झाड़ जैसे,
एक पत्ता टूट जाए,