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मुदइया / कुमार वीरेन्द्र

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गाँव की कोई न कोई
मेहरारू आती ही रहती, माई से कुछ कहती-सुनती
और इस बात पर भीग जातीं, 'बाल-बचवा सब, अबहीं बहुत ही छोटहन, न रहने
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