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माँ / भाग ६ / मुनव्वर राना

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बहादुर हो के भी मजबूर होते हैं दुल्हन वाले
 
मेरा बचपन था मेरा घर था खिलौने थे मेरे
 
सर पे माँ बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था
 
 
मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है
 
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है