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<poem>
तुम ना आना अब सपनों में।

स्मृति को आलिंगन कर मुझको
रहने दो बस
अब अपनों में,
तुम ना आना अब सपनों में।

कितने पल
उलझे हैं अब भी
यादों के उस इंद्रधनुष में,
जिसको
हमने साथ गढ़ा था,
रंग भरे थे रिक्त क्षणों में,
धागा-धागा
आशाओं से
सपने काते इन नयनों में।

तुम ना आना अब सपनों में।

रुमझुम गीतों
के नूपुर में
जड़ दी थीं कुछ गुनगुन बातें,
खनक उठे थे
हँसते लम्हें
आँसू से सीली वे रातें,
मादक सी
उन शामों को अब
बह ही जाने दो झरनों में।

तुम ना आना अब सपनों में।

अब के हम जब
लिखने बैठें,
झूठ-मूठ की एक कहानी,
तुम रख लेना
बाँध संभाले,
मेरी आँखों बहता पानी,
बादल के
सिरहाने उनको
मोती कर रखना गहनों में|

तुम ना अब सपनों में...

</poem>