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12:00, 13 जून 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शिशु पाल सिंह 'शिशु'
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<poem>
और की संध्या अपनी सुबह समझकर मुसकाने वाले,
प्रभाती की बेला में आँख मूँद कर सो जाने वाले।
रूप की देख सुनहली धूप, न इतराओ अपने ऊपर;
आज तुमसे कुछ प्रश्न विशेष, चाहते हैं अपना उत्तर।
बताओ किस दाता ने तुम्हें मुसकराने का दान दिया,
स्याहियों में सोने के फूल, खिलाने का सामान दिया।
कौन-से प्रेम-पात्र ने पात्र समझकर, स्नेह प्रदान किया?
जिसे तुमने अपने में जला-जला कर हवन-विधान किया।
मान ले आत्म-प्रकाशन हेतु स्नेह का हवन-विधान किया,
किन्तु किस महा-लाभ के लिये पतंगों की-की दाह-क्रिया?
तुम्हारा शीश उड़ाने जब कि हवाई हमलावर आये,
कहो तब किस अंचल की ओट प्राण बाती के बच पाये?
मगर वे झोंके भी हैं याद? बड़े तड़के जो आते हैं।
गगन की दीपावली के दिये, एक पल में बुझ जाते हैं॥
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