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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|संग्रह= निशा निमंत्रण निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन
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किस कर में यह वीणा धर दूँ?
 
देवों ने था जिसे बनाया,
 
देवों ने था जिसे बजाया,
 
मानव के हाथों में कैसे इसको आज समर्पित कर दूँ?
 
किस कर में यह वीणा धर दूँ?
 
इसने स्‍वर्ग रिझाना सीखा,
 
स्‍वर्गिक तान सुनाना सीखा,
 
जगती को खुश करनेवाले स्‍वर से कैसे इसको भर दूँ?
 
किस कर में यह वीणा धर दूँ?
 
क्‍यों बाक़ी अभिलाषा मन में,
 
झंकृत हो यह फिर जीवन में?
 
क्‍यों न हृदय निर्मम हो कहता अंगारे अब धर इस पर दूँ?
 
किस कर में यह वीणा धर दूँ?
</poem>
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