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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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आज कुछ फ़रमान है कल और कुछ
बढ़ रही है रोज़ दलदल और कुछ

लीजिए खाते का फिर से जाएज़ा
है मेरे ज़ख़्मों का टोटल और कुछ

लिख रहे हैं आप मर्ज़ी से बयान
कह रही हैं ख़ाके मक़तल और कुछ

मेरी कोशिश दुश्मनी का ख़ात्मा
आप करते हैं रिहर्सल और कुछ

इश्क़ में सहरा तलक तो आ गया
कर न बैठे दिल ये पागल और कुछ

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