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11:37, 10 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=पंकज चौधरी
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|संग्रह=
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<poem>
तुम लोक-लाज की सबसे ज्यादा चिंता करते हो
इसका बोझ तुम्हारे सर पर सवार रहता है
इसीलिए चाहते हुए भी
तुम वह सब नहीं कर पाते
जो तुम करना चाहते हो
अब तुम
इसके बोझ को सर से उतार फेंको
अपने मन की कर डालो
लोक-लाज का फेरा है सबसे बड़ा घेरा
इसने जिसको घेरा
दुनिया ने उसको पेरा
लोक-लाज को जिसने तजा
दुनिया ने लहराई उसकी धजा!
</poem>