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<poem>
'''उपदेशक भजन- कलयुग का वृतांत'''

'''कलुकाल के बीच महा पाप हो रहे,'''
'''भाई किसी का ना दोष दुखी आप हो रहे ।। टेक ।।'''

धर्म कर्म तजया ज्ञान ध्यान भूलगे,
बुद्धि के मलिन खान-पान भूलगे,
मात-पिता गुरु का सम्मान भूलगे,
कैसे हो कल्याण करना दान भूलगे,
यज्ञ हवन पुण्य बंद जाप हो रहे।।

रह्या ना विचार बुद्धि मंद हो गई,
इन्हीं कारणों से वर्षा बंद हो गई,
शब्द स्पर्श रूप रस कम गंध हो गई,
इन पापों से प्रजा जड़ाजंद हो गई,
पुत्री के दलाल खुद बाप हो रहे।।

ब्राह्मण गऊ संत का सतकार रहया ना,
परमेश्वर की भक्ति शक्ति धरम दया ना,
ऐसा छाया भरम रही शरम हया ना,
भाई वाल्मीकि व्यास जी असत्य कहया ना,
घर घर में अबलाओं के प्रलाप हो रहे।।

देखो लाखों लाख नीत गऊ घात हो,
हो रहे भूकम्प बहोत गर्भपात हो,
ऊच नीच वरण सब एक जात हो,
कहते केशोराम सब विपरीत बात हो,
देख नंदलाल चुपचाप हो रहे।।
</poem>
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