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11:53, 18 अगस्त 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जितेन्द्र सोनी
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|संग्रह=
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<poem>
कुचले, मसले, पराजित तो
बहुतेरे विकल्प हैं आपके पास
निराशा, भड़ास, लांछन, निंदा
या फिर से हौसला
मुश्किल है सबसे ज्यादा
दुबारा खड़ा होना हौसले से
बनिस्पत उन सब विकल्पों के
जहां तक आप सोच सकते हैं
पर नामुमकिन नहीं है
हौसला
खैरात, भाग्य, तुक्का, भौतिक नहीं
बल्कि आस, विश्वास, प्रयास है
राख होने पर भी उड़ पाने का
चट्टान से भी एक बीज के प्रस्फुटन का
किरचे-किरचे समेटकर वजूद पाने का
हौसला
ना तो किसी की बपौती है
ना ही काठ की हांडी !
</poem>