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11:55, 18 अगस्त 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जितेन्द्र सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
तुम्हारी चिंता
शेयर सूचकांक गिरने की है
जो किसी क्लब में
अंग्रेजी बोलते हुए
सिगरेट, ड्रिंक्स के साथ
नशे में घुल जाती है
मेरी चिंता भी
गिरने की ही है
मगर घर की सरकंडों की छत की
और ये चिंता
गालियां बकते हुए
बीड़ी, हथकड़ दारू के साथ
उतरती नहीं है
जब स्क्रीन पर
बीएसई चढ़ रहा होता है
और तुम
तिजोरियां भर रहे होते हो
तो मैं जमीर की सीढ़ियां उतरकर
बेच आता हूँ
अंतिम जेवर भी
पत्नी का गला खाली करके
एक छत के लिए
चिंताओं की धार का
पेट के खालीपन से
समानुपाती रिश्ता है !!
</poem>