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{{KKRachna
|रचनाकार=ललित कुमार (हरियाणवी कवि)
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatHaryanaviRachna}}
<poem>
'''मै सारी रात रही भ्रमति, कर मेरी बात का ख्याल,'''
'''हो सुण सुपने का हाल || टेक ||'''
तीन पहर बीतगे पुरे, थी चौथे पहर की रात पिया,
चार अप्सरा मनै लेवण आई, मेरा होया फ़िक्र मै गात पिया,
खड़े 52 कलवे 56 भैरू, संग मै नाथो के नाथ पिया,
कलवे-भैरू देख पति जी, मेरा होग्या जी घबराणे नै,
एक धोला हाथी स्वर्णगिरी के, लाग्या चक्र लाणे नै,
वै परी-अप्सरा आके सजन, फेर लागी मनै नुहाणे नै,
फुला के लगे बाग़-बगीचे, अमृत के भरे ताल ||
अमृत जल तै नुहा-धुवाकै, मेरा करण लगी सिंगार पिया,
फेर हीरे-पन्ने कणी-मणियो के, दिए बहोत उपहार पिया,
इतणे मै वो धोला हाथी, पुरे चक्कर लाग्या चार पिया,
हर चक्र मै अलग सवारी, फुल बिछे थे राहयां मै,
उस देवलोक की शोभा देख, मेरै आनंद होगे काया मै,
एक बालरूप भूप धारकै, खेलै था धनमाया मै,
एक सोने का पहाड़ दिखग्या, होगे कोड कमाल ||
नौ खंड चौदा भुवन घुमकै, मनै देखे स्वर्ग के रुल पिया,
रंग-बिरंगी खिली केसर क्यारी, घली चौगरदै झूल पिया,
मेरा दहणे अंग पै वो धोला हाथी, टेक गया एक फुल पिया,
फुल स्पर्स कर गजराज, एक दम अंतर्ध्यान होया,
कंचन की ज्यूँ मेरी काया चमकी, आदमदेह मै ज्ञान होया,
फेर निराकार-साकार रूप, आण खड्या भगवान होया,
एकदम सब अद्रश्य होग्या, टूट गया यो माया का जाल ||
स्वर्ग लोक मै मेरे पिया, मनै चन्द्रनाथ अवतारी देख्या,
अपणे सतगुरु की सेवा करता, गुरु जगदीश पुजारी देख्या,
यज्ञ-हवंन तप-दान करकै, करता मोक्ष की त्यारी देख्या,
भगवान बराबर मान गुरु नै, ललित चरण का दास होग्या,
हित-चित से सेवा करके, अपणे सतगुरु का खास होग्या,
वा पूर्व मै तै पीली पाटी, यो चौगरदै प्रकाश होग्या,
वो चौथा पहर बीतग्या पूरा, मै उठ लई तत्काल ||
</poem>
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'''मै सारी रात रही भ्रमति, कर मेरी बात का ख्याल,'''
'''हो सुण सुपने का हाल || टेक ||'''
तीन पहर बीतगे पुरे, थी चौथे पहर की रात पिया,
चार अप्सरा मनै लेवण आई, मेरा होया फ़िक्र मै गात पिया,
खड़े 52 कलवे 56 भैरू, संग मै नाथो के नाथ पिया,
कलवे-भैरू देख पति जी, मेरा होग्या जी घबराणे नै,
एक धोला हाथी स्वर्णगिरी के, लाग्या चक्र लाणे नै,
वै परी-अप्सरा आके सजन, फेर लागी मनै नुहाणे नै,
फुला के लगे बाग़-बगीचे, अमृत के भरे ताल ||
अमृत जल तै नुहा-धुवाकै, मेरा करण लगी सिंगार पिया,
फेर हीरे-पन्ने कणी-मणियो के, दिए बहोत उपहार पिया,
इतणे मै वो धोला हाथी, पुरे चक्कर लाग्या चार पिया,
हर चक्र मै अलग सवारी, फुल बिछे थे राहयां मै,
उस देवलोक की शोभा देख, मेरै आनंद होगे काया मै,
एक बालरूप भूप धारकै, खेलै था धनमाया मै,
एक सोने का पहाड़ दिखग्या, होगे कोड कमाल ||
नौ खंड चौदा भुवन घुमकै, मनै देखे स्वर्ग के रुल पिया,
रंग-बिरंगी खिली केसर क्यारी, घली चौगरदै झूल पिया,
मेरा दहणे अंग पै वो धोला हाथी, टेक गया एक फुल पिया,
फुल स्पर्स कर गजराज, एक दम अंतर्ध्यान होया,
कंचन की ज्यूँ मेरी काया चमकी, आदमदेह मै ज्ञान होया,
फेर निराकार-साकार रूप, आण खड्या भगवान होया,
एकदम सब अद्रश्य होग्या, टूट गया यो माया का जाल ||
स्वर्ग लोक मै मेरे पिया, मनै चन्द्रनाथ अवतारी देख्या,
अपणे सतगुरु की सेवा करता, गुरु जगदीश पुजारी देख्या,
यज्ञ-हवंन तप-दान करकै, करता मोक्ष की त्यारी देख्या,
भगवान बराबर मान गुरु नै, ललित चरण का दास होग्या,
हित-चित से सेवा करके, अपणे सतगुरु का खास होग्या,
वा पूर्व मै तै पीली पाटी, यो चौगरदै प्रकाश होग्या,
वो चौथा पहर बीतग्या पूरा, मै उठ लई तत्काल ||
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